हरियाणा की गठबधंन सरकारों में राज्यपाल की भूमिका: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors

  • दिनेश

Abstract

राज्यपाल का पद आरंभ से ही चर्चा का विषय रहा है। प्रारंभ में राज्यपाल के पद को व्यर्थ माना जाता था क्योंकि केन्द्र व राज्यों में काँग्रेस की सरकार थी। राज्यपाल सिर्फ रबर स्टांप की तरह कार्य करते थे। उनकी शक्तियाँ प्रयोग में नहीं आती थी । परंतु 1967 के बाद से राज्यपाल की भूमिका में परिवर्तन आया क्योंकि आठ राज्यों में गैर-काँग्रेसी सरकार बनी। हरियाणा विधानसभा चुनाव 1982, बिहार विधानसभा चुनाव 2005, गोवा विधानसभा चुनाव 2017 आदि ऐसे मामले सामने आए जिनमें राज्यपाल ने स्वविवेकी शक्तियों का प्रयोग किया। संविधान में राज्यपाल को स्वयं विवेकी अधिकार दिए गए हैं। राज्यपाल के स्वविवेकी कार्यों को प्रश्न चिन्हित नहीं किया जा सकता और न ही न्यायालय में चुनौती दी जा सकती। राज्यपालों के अनेक ऐसे कृत्य सामने आए जिनमें राज्यपालों की भूमिका धूमिल हुई है।

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Published

2000-2024

How to Cite

दिनेश. (2023). हरियाणा की गठबधंन सरकारों में राज्यपाल की भूमिका: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. African Diaspora Journal of Mathematics ISSN: 1539-854X, Multidisciplinary UGC CARE GROUP I, 25(5), 47–58. Retrieved from https://newjournalzone.in/index.php/ijmfsmr/article/view/87

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